बुधवार, 8 जुलाई 2009

अगले जनम मोहे ........

अरविन्द शर्मा :
लाइवमैं सोच नहीं पा रहा हूं कि इस सवाल में दुआं नजर आ रही है या वो दर्द कहने की कोशिश की जा रही है जो हम और आप नहीं समझ पा रहे हैं। यह सवाल राजस्थान की उन बेटियों का है जो इस सवाल के साथ हर पल तड़प रही है। यह दर्द भी और किसी ने नहीं, उनके जन्मदाता ही दे रहे हैं। दर्द कितना बड़ा है, इसका अंदाजा कलर्स टीवी के बालिकावधु से लगाया जा सकता है। तारिख एक जुलाई 2009। अपने कुछ सवालों के जवाब लिए मैं निकल चुका हूं, उन गांवों में जहां बेटियों को जिंदगीभर का दर्द दिया जा रहा है। दिल्ली की ममता संस्था जो बाल-विवाह की प्रथा के खिलाफ लड़ रही है, उसका दल भी मेरे साथ है। इटली के मार्को व एलेक्जेंड्रा ने भी अपने सवालों के जवाब तलाशने मेरे साथ निकल पड़े। कटराथल की ख्यालियों की ढाणी। यहां के कल्लुराम सैनी (बदला हुआ नाम) से मिलते ही मैंने पहला सवाल किया, आपने बेटी की शादी बचपन में क्यों कर दी? जो जवाब मुझे मिला, उसकी गूंज आज भी मेरे कानों को चीर रही है। जवाब था, साहब बेटियों को ज्यादा दिनों तक घर में रखना अशुभ होता है। शायद आपको यकीन न हो कि एक पिता ऐसा कैसे कह सकता है, मगर यह हकीकत है। कुछ परिवार ऐसे भी है जो गरीबी के कारण अपने बेटियों को उस अंधे कुएं में धकेल देते हैं, जहां रोटी है, कपड़ा है, सिर छुपाने के लिए एक छत है। बस कुछ नहीं है तो वो हंसता-खेलता बचपन, मां-बाप का प्यार, सहेलियों के साथ मटरगस्ती और वो सुनहरी यादें जो एक बेटी पिता के घर से विदा होते वक्त अपने साथ ले जाती है। यकीन नहीं है तो मेना (बदला हुआ नाम) की दर्दभरी दांस्ता जान लीजिए। यह आठ बरस की थी तब उसके पिता ने उसकी शादी कर दी, आज यह 21 बरस की हो चुकी है। अपने ससुराल में खुश है, मगर इसके सवालों के जवाब मैं और मेरा दल का कोई भी सदस्य नहीं दे पाया। मेना का सबसे बड़ा सवाल था, क्या मुझे हंसता-खेलता बचपन वापस लौटा सकते हो? मैं और मेरे साथी कटराथल, रामपुरा, कांवट, बंधावाला की ढाणी, दुल्लेपुरा व श्रीमाधोपुर के कुछ गांवों में 50 से अधिक परिवारों से मिले। तस्वीर का दूसरा पहलु भी बड़ा ही खौफनाक है। महिला एवं बाल विकास विभाग के सर्वे के मुताबिक, राजस्थान में 80 फीसदी बाल-विवाह जबरन कराए जाते हैं। बच्चों को नए कपड़े, चॉकलेट का लालच देकर उन्हें उस डोर में बांध दिया जाता है, जिसके मायने क्या है जब तक उन्हें पता चलते हैं, तब तक जिंदगी की खुशियां 'राखÓ में बदल चुकी होती है। जरा सोचिए.............! apkikhabar.blogspot.com