बुधवार, 29 अप्रैल 2009

बेटिया

घर भर को जन्नत बनाती है बेटियाँ॥! अपनी तब्बुसम से इसे सजाती है बेटियाँ॥ ! पिघलती है अश्क बनके ,माँ के दर्द से॥! रोते हुए भी बाबुल को हंसाती है बेटियाँ॥! सुबह की अजान सी प्यारी लगे॥, मन्दिर के दिए की बाती है बेटियाँ॥! सहती है दुनिया के सारे ग़म, फ़िर भी सभी रिश्ते .निभाती है बेटियाँ...! बेटे देते है माँ बाप को .आंसू, उन आंसुओं को सह्जेती है .बेटियाँ...! फूल सी बिखेरती है चारों और खुशबू, फ़िर .भी न जाने क्यूँ जलाई जाती है बेटियाँ...
Posted by RAJNISH PARIHAR